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Pashu Rogo ki Jaankari पशुओ के रोगों की पहचान भाग 1

Posted on December 25, 2016January 30, 2021 by Yash Jat

नमस्कार दोस्तों आज हम इस पोस्ट में पशु पालन करने वाले किसानों के लिए बहुत ही काम की जानकरी ले कर आयें है। उम्मीद है इस जानकरी से पशुपालको  को काफी लाभ मिलेगा आज की पोस्ट में हम बताएँगे

Table of Contents

Pashu Rogo ki Jaankari पशुओं में होने वाले रोग एवं उनकी पहचान कैसे करे

pashu me lagne wale rog ki janakri
पशु रोग की जानकारी
मित्रों पशु पालन एक लाभ दायक  व्यवसाय है। लेकिन यदि पशुपालक सावधानी नही रखे तो उसे भारी नुक्सान उठाना पड़ सकता है। खासतौर पर जब पशु बीमार हो क्यों की वर्तमान में अच्छे दुधारू पशु का मूल्य काफी ज्यादा है। और बीमारी के कारण कोई पशु मरता है तो इस धंधे में बहुत नुकसान होता है। आज की इस पोस्ट में पशुओं में लगने वाले रोगों की पहचान के बारे में जानेंगे मैने इसको भाग 1 नाम इसलिए दिया क्यों की सभी रोगों को एक पोस्ट के माध्यम से बता नही सकते बाकी बचे रोगों के बारे में अगली पोस्ट में लिखूंगा। आप माय किसान दोस्त पर विजिट  करते रहे इन रोगों के बारे में बताने के बाद हम एक पोस्ट में पशुओं के रोगों का देशी इलाज यानि उपचार कैसे करे और पशुओं के लिए विभिन्न दवाइयों के बारे में भी लिखेंगे।

पशुओं के प्रमुख रोग और उनके लक्षण 

संक्रमण रोग;- छूत के कारण होने वाले रोगों को संक्रमण रोग कहते है। यह रोग पशु के शरीर में कई प्रकार के विषाणु चले जाने के कारण होता है। फिर ये एक पशु से दूसरे पशु में लगते है फिर एक के बाद एक पशु बीमार होते है। फिर एक महामारी के रूप में फेल जाते है 
संक्रमण से होने वाले रोगों के बारे में नीचे बताया गया है!

1 लगडा बुखार (black quarter)

जैसे की इसका नाम लगडा बुखार है। उसी तरह इसका काम है इस बुखार में पशु के आगे पीछे के पैरो में सूजन आ जाती है। और पशु लगडा लगडा चलता है। इस में कीटाणु पानी अथवा शरीर पर लगे घाव के जरिये शरीर के अन्दर चले जाते है। जिससे पशु का शरीर अकड़ने लगता है। इसके कीटाणु पुरे शरीर में जहर बना देते है। यदि समय पर उपचार नही किया जाया तो पशु एक दो दिन में ही मर जाता । रोग में पशु का शरीर सुस्त हो जाता है। धीरे धीरे पूरा शरीर अकड़ जाता है। बड़ी मुश्किल से चल पता है। उसका सर और कान लटक जाते है। उसकी त्वचा पर सूजन दिखने लगती है। उसका पूरा शरीर गर्म हो जाता है। और तीव्र बुखार आता है। एवं सास लेने और छोड़ने पर परेशानी आती है। इस अवस्था में वो खाना पीना बंद कर देता है यह रोग मुख्य रूप से गाय भैस एवं भेड़ में ज्यादा देखने को मिलता है। छह वर्ष से दो वर्ष के पशु इसकी चपेट में ज्यादा आते है।

2 माता रोग (rinderpest )

यह भी एक छूत वाला रोग ही है जो की पहाड़ी क्षेत्र  में रहने वाले पशुओं में अधिक पाया जाता है। इस रोग का चार पांच दिन में आसानी से पता लग जाता है। इस रोग में सबसे पहले पशु को बहुत तेज़ यानि की 104 डिग्री से 106 डिग्री तक हो जाता है। पशु सुस्त हो जाता है उसके शरीर के बाल खड़े हो जाते है। पशु कांपने लगता है। आँखो की पुतलिया सिकुड़ जाती है। और आँखो से आँसू बहने लगते है। कान सर और गर्दन लटक जाती है। पशु एस अवस्था में अपने दाँत पीसने लगता है। और उसे प्यास लगने लगती है। वो जुगाली करना बंद कर देता है। सात आठ दिन बाद पशु के मुहँ में मसूड़ों और ज़ुबान के आसपास नुकीले छोटी किल tyap के छाले  हो जाते है। और धीरे धीरे वो बड़े हो कर फोफले बन जाते है। इसे ही छाले पशु के आंतों में भी हो जाते है। पशु खाना पीना बंद कर देता है पतला गोबर करने लगता है। कभी कभी उसके गोबर में खून आने लगता है। मुँह में छाले की वजह से पशु भूखा रहता है। और कमजोर पड़ जाता है और सात आठ दिन में पशु मर जाता है।

3 गल गोटू रोग (haemorrhagic )

यह रोग मुख्य रूप से गाय भेसो में अधिक लगता है। यह मानसून के समय व्यापक रूप से फैलता है। यह बहुत ही तेज़ एवं भयंकर छूत  रोग होता है। इसमें पशु के शरीर का तापमान 105 डिग्री से ले कर 108 डिग्री तक पहुँच जाता है। यह pesteurella multocida नामक जीवाणु  के कारण होता है। इस रोग में पशु के मुँह से लार टपकती है। सिर और गले में बहुत दर्द होता है। पशु कांपने लगता है। खाना पीना छोड़ देता है। पशु के पेट में दर्द होता है। वह ज़मीन पर गिर जाता है। उसकी आंखे लाल हो जाती है। श्वास लेने में कठिनाई होने लगती है। पशु खूनी दस्त करने लगता है। उसकी जीभ का रंग काला पड़ जाता है। और वो बाहर की और लटक जाती है इस बीमारी में ७० प्रतिशत पशु तत्काल मर जाते है। इसलिए इसका उपचार लक्षण पता चलते ही जितना जल्दी हो सके करना चाहिए। इस रोग से मरे हुए पशु को दफ़ना चाहिए उसे फेंकना नही चाहिए वरना उसके संक्रमण से अन्य पशु इसी बीमारी के चपेट में आकर मर जाते है।

4 खुर मुहँ पका रोग (foot and mouth disease )

पशुओं में खुर मुखपाक रोग अत्यधिक संक्रमण एवं घातक रोग होता है। यह रोग फटे खुर वाले पशुओं में होता है। यह रोग कभी भी किसी भी मौसम में हो सकता है। इस रोग के लक्षण रोग ग्रसित पैर का ज़मीन पर बार बार पटकना लगडा कर चलना खुर के आसपास सूजन रहना खुर में घाव और कीड़े पड़ना मुहँ से लार पटकना मुहँ जीभ ओष्ट पर छाले हो जाना स्वस्थ होने के बाद भी हापना बुखार का आना होठ लटक जाना रोग के अधिक बड जाने पर नथुने में फोफले बन जाना। दुधारू पशु में दूध की कमी आ जाती है उसकी कार्य करने की क्षमता  कम हो जाती है।

5 विष ज्वर/बाबला रोग (anthrax )

यह भी एक संक्रमित रोग है। गाय बेल भैस के अलावा यह अन्य पशुओं में भी होता है। यह रोग कुत्तों और सुअर में नही होता है। इस बीमारी में पशु को 106 या 107 डिग्री तक तेज़ बुखार रहता है। इसमें पशु की त्वचा का रंग मटमैला और नीला पड़ जाता है। पशु की आँखो की चमक ख़तम हो जाती है। इसमें पशु बेचन होकर खूटे के चक्कर लगता है। और दर्द के मारे चिल्लाते भी है। गोबर के साथ खून का आना और गहरे रंग का पेशाब आना इसके लक्षण है। फिर पशु बेहोश हो जाता है एक दो दिन बाद उसकी मृत्यु हो जाती है।

6 फुफ्फुस ज्वर (contagious pleuro pneumonia)

इस रोग को निमोनिया भी बोलचाल की भाषा में कहते है। यह बहुत ही सूक्ष्म जीवाणु द्वारा उत्पन्न होता है। इसमे सबसे पहले पशु को तेज़ बुखार आता है। उसमे सभी लक्षण निमोनिया के दीखते है। पशु सुस्त हो जाता है और खाना पीना छोड़ देता है। श्वास लेने छोड़ने में परेशानी आती है। नाक में सर्दी रहती है और बार बार ख़ासी का ठसका उठता रहता है। यह रोग अत्यधिक तेज़ हो जाने पर पशु की श्वास रुक जाती है। और पशु की मृत्यु हो जाती है।

7 सक्रमक गर्भपात (brucelosis)

यह रोग विशेष कर गाय और भेसो में होता है। यह रोग बुसेला कीटाणु एवं संक्रमण के कारण होता है। इसमें बच्चा समय से पहले ही गर्भ में गिर जाता है इस रोग में पांचवें या आठवें माह में ही गर्भपात हो जाता है। जिससे पशु की जेर गर्भ में ही रह जाती है जिसे निकलना अतिआवश्यक हो जाता है। इस रोग में योनी और गर्भाशय में सूजन आ जाती है। और योनी का बाहरी भाग लाल हो जाता है।

8 थनैला रोग (mastitis )

यह भी एक जीवाणु जन्य संक्रमित रोग है। जो की दुधारू पशुओं में होता है। यह रोग कई तरीके के जीवाणु विषाणु यीस्ट एवं फफूंद और मोल्ड के संक्रमण के कारण होता है। इस रोग के लक्षण में सर्वप्रथम पशु के थन गर्म हो जाते है। थनों में सूजन एवं दर्द रहता है। इस दौरान पशु के शरीर का तापमान भी बड जाता है और पशु के दूध में की मात्रा और गुणवत्ता कम हो जाती है। दूध में खून का छटका भी आता है।

9 खूनी पेशाब आना (contagious red water )

इस रोग में पशु को तेज़ बुखार आता है। जिससे आँख और जीभ पर पीलापन आ जाता है। पेशाब के साथ साथ खून भी आने लगता है एवं दस्त लग जाती है 

10 दुग्ध ज्वर (milk fever)

मिल्क फीवर ज्यादा दूध देने वाले पशुओं में केल्सियम की कमी के कारण होता है। यह रोग प्राय 5 से 10 साल वाली मादा पशु में प्रजनन के तीन दिन के अन्दर इसके लक्षण दिखाई देते है। जिसमे पशु के शरीर का तापमान कम हो जाता है। पशु बेचैन रहता है उसके शरीर में अकडन आ जाती है। जिस से वो टिक से चल फिर नही पता है और एक तरफ अपनी गर्दन लटकाए बैठा रहता है। यदि हम उसके सिर और गर्दन को सीधा करते है तो भी वह फिर से उसी ओर मोड़ के बेट जाता है।

11 सुखा रोग (john disease)

यह भी एक संक्रमित रोग है जो ” वैसीलस ” नामक कीटाणु से लगता है। इस रोग में ये जीवाणु पशु की लार गोबर मूत्र आदि के माध्यम से बाहर निकलते रहते है। इस रोग का पता बहुत ही धीरे से चलता है। इस रोग में पशु सुस्त रहता है उसके शरीर में खून की कमी हो जाती है। पतला पतला गोबर करता है उसके जबड़े के नीचे सूजन रहती है इस रोग से पशु साल भर में मर जाता है।

12 पशु में चेचक रोग (cow pox )

इस रोग में पशु के शरीर का तापमान ज्यादा हो जाता है। एवं पशु के शरीर पर फफोले जैसे दाने दिखने लगते है। यह रोग अधिकतर गाय और बेल में होता है भैस पर इसका असर बहुत ही कम होता है। यह रोग बकरियों और भेडो के मेमनों को भी अधिक प्रभावित करता है। जिसमे उनके शरीर के नाज़ुक भाग पहले प्रभावित होते है। जैसे आँखो के चारों तरफ का भाग जांघों के अंदरुनी हिस्सा ऑतो में सूजन आ जाती है।

13 जबड हड्डा एवं कंठजीभा रोग 

जबड हड्डा रोग में में पशु के जबड़े की हड्डी बड जाती है। फिर उसमे धीरे धीरे फोड़े होने लगते है। और भूख लगने पर भी सही तरीके से खा पी नही पता है। परिणाम स्वरूप पशु कमजोर हो जाता है।
कंठजीभा रोग भी जबड हड्डा रोग से मिलता जुलता ही रोग होता है। इसमें पशु की जीभ सूज कर कठोर हो जाती है। और वो भी खा नही पता है और कमजोर हो जाता है। यह दोनों ही रोग पशु की कमजोर हड्डी और जीभ जैसी ग्रथियो को प्रभावित करते है।

14 पशु में चर्म रोग- खुजली,गजचर्म,और दाद 

 pashu me Dad khujli charm rog mkd
पशु में चर्म रोग
मित्रों आपने कई बार पशुओं को दीवार पेड़ आदि से अपने शरीर और सींगों को खुजाते देखा होगा। उसे हमें कभी भी नॉर्मली नही लेना चाहिए क्यों की ये गजचर्म हो सकता है। इसमें पशु के शरीर के बाल धीरे धीरे उड़ जाते है। और जिस जगह ज्यादा खुजली चलती है उस वाह की त्वचा सख़्त हो जाती है। और धीरे धीरे वो पुरे शरीर पर फेल जाता है।
दाद भी एक संक्रमित रोग है जो एक पशु से दूसरे पशु में फेल जाता है। यह रोग अधिकतर बरसात के बाद  में होता है यह रोग गंदगी और नमी के कारण होता है। इसमें रोगी पशु के शरीर पर गोल गोल दाग चस्ते पड़ जाते है जिससे पशु को बहुत तेज़ खुजली चलती है फिर उन धब्बों यानि दाद के चारों तरफ छोटी छोटी फुंसियां हो जाती है। और उन मे से पानी निकलने लगता है यदि वो अन्य पशु को लग जाये तो वो भी इस बीमारी की चपेट में आ जाता है।

Conclusion:

मित्रों आज की पोस्ट में हमने कुछ ही रोगों के बारे में जिक्र किया है। अगली पोस्ट यानि भाग 2 में बाकी बीमारियों के बारे में लिखेंगे उसके उन सभी पशु रोगों के उपचार ओर उनसे बचाव के तरीकों पर पोस्ट लिखेंगे इस लिए आप माय किसान दोस्त पर विजिट  करते रहे।

हेल्लो दोस्तों में कोई वैज्ञानिक या पशु चिकित्सक नही हु में भी एक छोटा सा किसान हु मेरा इस webside पर जानकरी देने का एक मात्र उद्देश्य किसान भाइयों की हेल्प करना है।यदि आपके पास भी इसी कोई जानकारी हो जिससे किसान भाइयों को लाभ मिल सके तो मुझे ज़रुर लिखे उसे में आपके नाम और फोटो के साथ प्रकाशित करुँगा यह सब जानकारियां आप जैसे अच्छे मित्रों द्वारा दी जाती है। यदि इस साइड में दी गयी जानकारी में कोई ग़लती हो या आपका कोई सुझाव हो तो मुझे ज़रुर बताये में आपका आभारी रहुगा !

पशु रोगों की पहचान भाग 2 यहाँ पढ़े ⇐

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Yash Jat

3 thoughts on “Pashu Rogo ki Jaankari पशुओ के रोगों की पहचान भाग 1”

  1. Unknown says:
    June 25, 2017 at 3:19 am

    En sab rogo ka elaj Kiya he Bs app me bimari ke bare me hi Kiya elaj kiya

    Reply
  2. Unknown says:
    October 27, 2017 at 3:21 pm

    1

    Reply
  3. Unknown says:
    October 27, 2017 at 3:22 pm

    mere gaay ka pet phul gya kya karu sir

    Reply

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